kanchan singla

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इक नयी सुबह...!!

सुबह हूं मैं मीठी धूप की तरह
सफेद उजले आसमान में,
बिखरे कोरे कागज की तरह...

हर सुबह होती है इन्हीं,
कोरे पन्नों को भरने के लिए...

दिन लिखते लिखते अंधेरा हो,
ढलती रात के बाद सवेरा हो,
फिर एक नयी किरन इन,
कोरे पन्नों को भरने के लिए बेचैन हो।।

सुबह मुझे जगाती है...
इक कोरे दिन को लिखने के लिए,
अंधेरा छोड़, रोशनी से आंखे भरने के लिए,
नए सफ़र, नयी मंजिल की ओर बढ़ने के लिए
रोज इक नयी उम्मीद लेकर सुबह मुझे जगाती है।।

जागती हूं मैं...
कुछ अधूरे ख्वाबों के लिए,
अपनों की मुस्कुराहट के लिए,
थोड़ी सी मुस्कराहटें बांटने के लिए,
उड़ते पंछियों को देखने के लिए,
भागती हुई जिंदगी में... 
कुछ पल ठहर जाने के लिए,
मैं हर रोज जागती हूं 
इक नयी दुनियां देखने के लिए।।

हर नयी सुबह के बाद भी...
मुझे तलाश रहती है...
उस एक नयी सुबह की,
जिसमें मैं कुछ पल ठहर सकूं,
खुद में ही कुछ पल बिताने के लिए।।

लेखिका - कंचन सिंगला

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7 Comments

Seema Priyadarshini sahay

08-Dec-2021 05:35 PM

बहुत खूबसूरत रचना

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Raghuveer Sharma

08-Dec-2021 01:43 PM

waah

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Niraj Pandey

08-Dec-2021 07:40 AM

वाह बहुत खूब

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